क्रिया
क्रिया का शाब्दिक अर्थ है कार्य। जिन शब्दों से किसी काम का करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते है।
जैसे: खाना, नाचना, खेलना, पढ़ना, मारना आदि।
क्रिया का निर्माण, इसके मूल धातु से होता है। धातु में ‘ना’ लगा देने से क्रिया बन जाती है।
जैसे – ‘लिख’ धातु में ‘ना’ लगा देने से ‘लिखना क्रिया’ बनी ।
हिन्दी व्याकरण में कुछ ऐसी भी क्रियाएँ होती है, जो धातुओं के साथ -साथ संज्ञा एवं विशेषण के सहयोग से भी बनती है। जैसे – काम संज्ञा से कमाना, गर्म विशेषण से गर्माना आदि।
व्याकरण में कोई भी वाक्य क्रिया के बिना पूरा नहीं होता है। इसे भी व्याकरण का एक विकारी शब्द माना जाता है | इसका रूप लिंग , वचन के पुरुष के कारण से बदलते हैं।
क्रिया हमें समय सीमा के बारे में संकेत देती है। क्रिया के रूप की वजह से हमें यह पता चलता है की कार्य वर्तमान में हुआ है , भूतकाल में हो चूका है या भविष्यकाल में होगा। क्रिया का निर्माण धातू से होता है। जब धातू में ना लगा दिया जाता है तब क्रिया बन जाती। क्रिया को संज्ञा और विशेषण से भी बनाया जाता है। क्रिया को सार्थक शब्दों के आठ भेदों में से एक माना जाता है।
जैसे :- खाना , नाचना , खेलना , पढना , मारना , पीना , जाना , सोना , लिखना , जागना , रहना , गाना , दौड़ना आदि।
क्रिया के उदाहरण
- (i) राम खेल रहा है।
- (ii) मीना नाच रही है।
- (iii) अली किताब पढ़ रहा है।
- (iv) बाजार में बम्ब फट गया है।
- (v) बच्चा पलंग से गीर गया है।
- (vi) बाहर बारिस हो रही है।
- (vii) राधा नाच रही है।
- (viii) मुकेश कॉलेज जा रहा है।
- (ix) सरोज खाना खा रही है।
- (x) भगत सिंह बड़े वीर थे।
- (xi) मीरा बुद्धिमान है।
- (xii) राम खाना खाता है।
- (xiii) घोडा दौड़ता है।
धातु
जिस मूल रूप से क्रिया को बनाया जाता है उसे धातु कहते है। यह क्रिया का ही एक रूप होता है। धातु को क्रिया का मूल रूप कहते हैं।
जैसे :- बोल , पढ़ , घूम , लिख , गा , हँस , देख , जा , खा , बोल , रो आदि।
क्रिया के तीन भेद माने जाते है
- १. अकर्मक
- २. सकर्मक
१.अकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया का शाब्दिक अर्थ होता है -कर्म रहित। ऐसी क्रियाएँ जिनमे कर्म नही होता ,जो क्रियाएँ बिना कर्म के पूर्ण हो जाती है, उसे अकर्मक क्रिया कहते है।
अथार्त जिन क्रियाओं का फल और व्यापर कर्ता को मिलता है उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे:
- वह चढ़ता है।
- वे हँसते है।
- नीता खा रही है।
ऊपर दिए गए वाक्यों में कोई कर्म नही है,केवल कर्ता और क्रिया है।
जैसे :- तैरना , कूदना , सोना , ठहरना , उछलना , मरना , जीना , बरसना , रोना , चमकना , हँसता , चलता , दौड़ता , लजाना , होना , बढना , खेलना , अकड़ना , डरना , बैठना , उगना , जीना , चमकना , डोलना , मरना , घटना , फाँदना , जागना , बरसना , उछलना , कूदना आदि।
नोट: जिस क्रिया में क्या ? प्रश्न पूछने पर उत्तर नही मिलता, वह अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे: ऊपर के वाक्य में क्या हँसते है ? प्रश्न पूछने पर कुछ भी उत्तर नही मिलता ।
उदहारण:
- (i) वह चढ़ता है।
- (ii) वे हंसते हैं।
- (iii) नीता खा रही है।
- (iv) पक्षी उड़ रहे हैं।
- (v) बच्चा रो रहा है।
- (vi) श्याम रोता है।
- (vii) गौरव सोता है।
- (viii) साँप रेंगता है।
- (ix) रेलगाड़ी चलती है।
- (x) वह लजा रही है।
- (xi) गाड़ी चलती है।
- (xii) मीरा गाती है।
२. सकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया का शाब्दिक अर्थ है- कर्म सहित । जिस क्रिया में कर्म होता है,कर्ता के साथ कर्म भी जुड़ा होता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते है। इसमे क्रिया का प्रभाव कर्म पर पड़ता है। जैसे -मै पुस्तक पढता हूँ। राम भोजन खाता है। इन वाक्यों में पुस्तक एवं भोजन कर्म है। इनके बिना क्रिया पूर्ण नही होती।
नोट – जब क्रिया में क्या, किसे, किसको का प्रश्न करने पर उत्तर मिल जाता है,उसे सकर्मक क्रिया कहते है।
जैसे:
- (i) वह चढाई चढ़ता है।
- (ii) मैं खुशी से हँसता हूँ।
- (iii) नीता खाना खा रही है।
- (iv) बच्चे जोरों से रो रहे हैं।
- (v) श्याम चोट से रोता है।
- (vi) श्याम फिल्म देख रहा है।
जैसे: ऊपर के वाक्य में राम क्या खाता है ? उत्तर -भोजन । अतः यह सकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया के भेद
- एककर्मक क्रिया
- द्विकर्मक क्रिया
पूर्ण एककर्मक क्रिया
जिस क्रिया के केवल एक कर्म के पुरे होने का पता चलता है उसे पूर्ण एककर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे :-
- (i) वह रोटी खाता है।
- (ii) श्याम टीवी देख रहा है।
- (iii) नौकरानी झाड़ू लगा रही है।
2. द्विकर्मक क्रिया
द्विकर्मक का अर्थ होता है दो कर्म वाला या दो कर्म सहित। जिस वाक्य में क्रिया के दो कर्म पाये जाते है,उसे द्विकर्मक क्रिया कहते है।
जैसे: राम ने श्याम को पुस्तक दी। इस वाक्य में राम और श्याम दो कर्म है। कभी-कभी प्रयोग के आधार पर एक ही वाक्य में अकर्मक और सकर्मक क्रियाएँ प्रयुक्त हो जाती है।
जैसे: घबराना क्रिया । सकर्मक -उसने मुझे घबराया । अकर्मक – मै घबराया हूँ।
जैसे:
- (i) सोहन ने गुरूजी को प्रणाम किया।
- (ii) नर्स रोगी को दवा पिलाती है।
- (iii) श्याम अपने भाई के साथ टीवी देख रहा है।
संरचना या प्रयोग के आधार पर क्रिया के भेद
- सामान्य क्रिया
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया
- प्रेरणार्थक क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया
- तात्कालिक क्रिया
- कृदंत क्रिया
- यौगिक क्रिया
- सहायक क्रिया
- सजातीय क्रिया
1. सामान्य क्रिया
जिस क्रिया के रूप से कल विशेष का पता न हो और उसके पीछे न लगा हो उसे सामान्य क्रिया कहते हैं अथार्त जब वाक्य में एक क्रिया का पता चले उसे सामान्य क्रिया कहते हैं।
जैसे :- रोना , धोना , खाना , पीना , नाचना , कूदो , पढ़ा , नहाना , चलना आदि।
2. संयुक्त क्रिया
जो क्रियाएँ दो या दो से अधिक धातुओं से मिलकर बनी होती हैं उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। अथार्त जो क्रियाएँ दो या दो से अधिक क्रियाओं के योग से बनी होती हैं उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :-
- (i) मैंने खाना खा लिया।
- (ii) तुम घर चले जाओ।
- (iii) मीरा बाई स्कूल चली गई।
- (iv) वह खा चुका।
- (v) मीरा महाभारत पढने लगी।
- (vi) प्रियंका ने दूध पी लिया।
- (vii) मोहन नाचने लगा।
- (viii) राम विद्यालय से लौट आया।
- (ix) किशोर रोने लगा।
- (x) वह घर पहुंच गया।
संयुक्त क्रिया के भेद:
- आरम्भबोधक संयुक्त क्रिया
- स्माप्तिबोधक संयुक्त क्रिया
- अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया
- अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया
- नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया
- आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया
- निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया
- इच्छाबोधक संयुक्त क्रिया
- अभ्यासबोधक संयुक्त क्रिया
- शक्तिबोधक संयुक्त क्रिया
- पुनरुक्त संयुक्त क्रिया
1. आरंभबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रिया से हमें पता चले की क्रिया आरम्भ होने वाली है उसे आरम्भ बोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे:
- (i) वह नाचने लगी।
- (ii) बरसात होने लगी।
- (iii) राम खेलने लगा।
2. समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से मुख्य क्रिया के समापन का पता चले उसे समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे:
- (i) वह सो चुका है।
- (ii) राम खा चुका है।
- (iii) वह लड़ चुका है।
3. अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से किसी क्रिया को निष्पन्न करने के लिए अवकाश का बोध कराया जाये उसे अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :- वह बहुत मुश्किल से सोने पाया है जाने न पाया।
4. अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से किसी क्रिया को करने की अनुमति दिए जाने का पता चले उसे अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :- मुझे सोने दो , मुझे कहने दो।
5. नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से किसी क्रिया की नित्यता का या उसके खत्म न होने का पता चले उसे नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :- नदी बह रही है। पेड़ बढ़ता गया।
6. आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से किसी क्रिया की आवश्यकता का या कर्तव्य पता चले उसे आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :- मुझे यह काम करना पड़ता है , तुम्हें यह काम करना चाहिए।
7. निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापर की निश्चयता का पता चले उसे निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :- वह बीच में ही बोल उठा – मैं मार बैठूँगा।
8. इच्छाबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से क्रिया के करने की इच्छा का पता चले उसे इच्छाबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :- वह घर आना चाहता है , मैं खाना चाहता हूँ।
9. अभ्यासबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से क्रिया को करने के अभ्यास का पता चले उसे अभ्यास बोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं। जब सामान्य भूतकाल की क्रियाओं में करना क्रिया लगा दी जाती है तब अभ्यासबोधक संयुक्त क्रिया बनती है।
जैसे :- वह पढ़ा करता है , तुम लिखा करते हो , मैं खेला करता हूँ।
10. शक्तिबोधक संयुक्त क्रिया
जिन संयुक्त क्रियाओं से क्रिया को करने के लिए शक्ति का पता चलता है उसे शक्तिबोधक क्रिया कहते हैं।
जैसे :- मैं लिख सकता हूँ , मैं पढ़ सकता हूँ।
11. पुनरुक्त संयुक्त क्रिया
जब दो समान ध्वनि वाली क्रियाओं के जुड़ने का पता चलता है उसे पुनरुक्त संयुक्त क्रिया कहते हैं।
जैसे :- वह खेला -कूदा करता है।
3. नामधातु क्रिया
क्रिया को छोडकर संज्ञा , सर्वनाम तथा विशेषण से मिलकर संयुक्त क्रिया को नामधातु कहते हैं। ये धातुओं के नाम से बनी होती हैं इसलिए नामधातु कहलाती हैं।
जैसे :- हाथ से हथियाना , बात से बतियाना , दुखना से दुखना , चिकना से चिकनाना , लाठी से लठियाना , लत से लतियाना , पानी से पनियाना , बिलग से बिलगाना , स्वीकार से स्वीकारना , धिक्कार से धिक्कारना , उद्धार से उद्धारना , शर्म से शरमाना , अपना से अपनाना , लज्जा से लजाना , झूठ से झुठलाना , टक्कर से टकराना , लालच से ललचाना , सठिया से सठियाना , गरम से गरमाना , अपना से अपनाना , दोहरा से दोहराना आदि।
उदहारण :- लुटेरों ने जमीन हथिया ली। उसने उन्हें लतिया दिया।
(1) संज्ञा शब्दों से बनाए कुछ नामधातु के उदहारण इस प्रकार हैं :-
संज्ञा शब्द = नामधातु इस प्रकार है :-
- (i) शर्म = शर्माना
- (ii) लोभ = लुभाना
- (iii) बात = बतियाना
- (iv) झूठ = झुठलाना
- (v) लात = लतियाना
- (vi) दुःख =दुखियाना
(2) सर्वनाम शब्दों से बने नामधातु के कुछ उदहारण इस प्रकार हैं:
जैसे :-
- (i) अपना = अपनापन
- (ii) पराया = परायापन
(3) विशेषण शब्दों से बने नामधातु के कुछ उदहारण इस प्रकार हैं :-
जैसे :-
- (i) साठ = सठियाना
- (ii) तोतला = तुतलाना
- (iii) नरम = नरमाना
- (iv) गरम = गरमाना
- (v) लज्जा = लजाना
- (vi) लालच = ललचाना
- (viii) फिल्म = फिल्माना
(4) अनुकरणवाची शब्दों से बने नामधातु के कुछ उदहारण इस प्रकार हैं :-
जैसे :-
- (i) थप-थप = थपथपाना
- (ii) थर- थर = थरथराना
- (iii) कँप- कँप = कंपकंपाना
- (iv) टन- टन = टनटनाना
- (v) बड- बड = बडबडाना
- (vi) खट- खट = खटखटाना
4. प्रेरणार्थक क्रिया
जिन क्रियाओं के प्रयोग से यह पता चले की कर्ता खुद कार्य न करके किसी और से कार्य करवा रहा है या किसी और को कार्य करने की प्रेरणा दे रहा हो उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।
जैसे :- कटवाना , करवाना , बोलवाना , पढवाना , लिखवाना , खिलवाना , सुनाना , पिलवाना , पिलवाता , पिलवाती आदि।
उदहारण :-
- (i) मालिक नौकर से कार साफ करवाता है।
- (ii) अध्यापक बच्चे से पाठ पढवाता है।
- (iii) मैंने राधा से पत्र लिखवाया।
- (iv) उसने हमें खाना खिलवाया आदि।
प्रेरणार्थक क्रिया के प्रेरक :-
- प्रेरक कर्ता
- प्रेरित कर्ता
1. प्रेरक कर्ता :- जो किसी और को प्रेरणा प्रदान करता है या प्रेरणा देता है उसे प्रेरक कर्ता कहते हैं।
जैसे :- मालिक , अध्यापिका।
2. प्रेरित कर्ता :- जो किसी और से प्रेरणा लेता है उसे प्रेरित कर्ता कहते हैं।
जैसे :- नौकर , छात्र आदि।
प्रेरणार्थक क्रिया के रूप :-
- प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
- द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
1. प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया में कर्ता प्रेरक बनकर प्रेरणा देता है उसे प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। ये सभी क्रियाएँ सकर्मक होती हैं।
जैसे:
- माँ परिवार के लिए भोजन बनाती है।
- जोकर सर्कस में खेल दिखाता है।.
2. द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
द्वितीय प्रेरणार्थ क्रिया में कर्ता खुद दूसरे को काम करने की प्रेरणा देता है उसे द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।
जैसे:-
- माँ पुत्री से भोजन बनवाती है।
- जोकर सर्कस में हाथी से करतब करवाता है।
प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के कुछ नियम इस प्रकार हैं :-
(i) मूल दो अक्षर वाली धातुओं में जब आना या वाना जोड़ दिया जाता है।
जैसे :
- पढ़ – पढ़ाना – पढवाना।
- चल – चलाना – चलवाना।
(ii) दो अक्षर वाली धातुओं में जब ऐ या ओ जोड़ दिया जाता है। जब दीर्घ स्वर को हस्व स्वर बना दिया जाता है।
जैसे:
- जीत – जिताना – जितवाना।
- लेट – लिटाना – लिटवाना।
(iii) तीन अक्षर वाली धातुओं में जब आना और वाना जोड़ दिया जाता है।
जैसे:
- समझ – समझाना – समझवाना।
- बदल – बदलाना – बदलवाना।
(iv) कुछ धातुओं में आवश्यकतानुसार प्रत्यय लगाए जाते हैं।
जैसे: जी – जिलाना – जिलवाना।
प्रेरणार्थक क्रिया के उदहारण इस प्रकार हैं:
मूल क्रिया = प्रथम प्रेरणार्थक = द्वितीय
प्रेरणार्थक के उदहारण इस प्रकार हैं :-
- (i) उठना = उठाना = उठवाना
- (ii) उड़ना = उड़ाना = उडवाना
- (iii) चलना = चलाना = चलवाना
- (iv) देना = दिलाना = दिलवाना
- (v) जीना = जिलाना = जिलवाना
- (vi) लिखना = लिखाना = लिखवाना
- (vii) जगना = जगाना = जगवाना
- (viii) सोना = सुलाना = सुलवाना
- (ix) पीना = पिलाना = पिलवाना
- (x) देना = दिलाना = दिलवाना
- (xi) धोना = धुलाना = धुलवाना
- (xii) रोना = रुलाना = रुलवाना
- (xiii) घूमना = घुमाना = घुमवाना
- (xiv) पढना = पढ़ाना = पढवाना
- (xv) देखना = दिखाना = दिखवाना
- (xvi) खाना = खिलाना = खिलवाना ।
5. पूर्वकालिक क्रिया:
पूर्वकालिक का अर्थ होता है – पहले से हुआ। जब कर्ता एक कार्य को समाप्त करके तुरंत दूसरे काम में लग जाता है तब जो क्रिया पहले ही समाप्त हो जाती है उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। पूर्वकालिक क्रिया को धातु में कर या करके लगाकर बनाया जाता है।
जैसे:
- (i) पुजारी ने नहाकर पूजा की।
- (ii) चोर सामान चुराकर भाग गया।
- (iii) विद्यार्थी ने पुस्तक से देखकर उत्तर दिया।
- (iv) वह खाकर सो गया।
- (v) लडकियाँ पुस्तक पढकर जाएँगी।
- (vi) राखी ने अपने घर पहुंच कर फोन किया।
- (vii) खिलाडी खेल कर बैठ गये।
- (viii) अनुज खाना खाकर स्कूल गया।
- (ix) वे सुनकर चले गये।
- (x) मैं दौडकर जाउँगा।
6. तात्कालिक क्रिया
यह क्रिया ही पूर्वकालिक क्रिया की तरह मुख्य क्रिया से पहले खत्म होती है लेकिन इसमें और मुख्य क्रिया में समय का अंतर न होकर क्रम का अंतर होता है उसे तात्कालिक क्रिया कहते हैं।
जैसे:
- वह आते ही सो गया |
- शेर देखते ही वह बेहोश हो गया |
7. कृदंत क्रिया
कृत प्रत्ययों को जोडकर जो क्रिया बनाई जाती है उसे कृदंत क्रिया कहते हैं अथार्त जब किसी क्रिया में प्रत्यय जोडकर उसका एक नया क्रिया रूप बनाया जाता है उसे कृदंत प्रत्यय कहते हैं।
जैसे :- चलता , भागता , दौड़ता , हँसता आदि।
8. यौगिक क्रिया
जिन वाक्यों में दो क्रियाएँ एक साथ आती हैं और दोनों मिलकर मुख्य क्रिया का काम करती हैं उसे यौगिक क्रिया कहते हैं। इसमें पहली क्रिया पूर्णकालिक होती है।
जैसे :- वह समान रखकर गया।
परीक्षा सिर पर आ पहुंची है।
9. सहायक क्रिया
जो क्रिया मुख्य क्रिया की सहायता करती हैं उन्हें सहायक क्रिया कहते हैं। मुख्य क्रिया के अर्थ को स्पष्ट करने और अर्थ को पूरा करने के लिए सहायक क्रिया की जरूरत पडती है। कभी एक तो कभी एक से ज्यादा क्रिया सहायक क्रिया के रूप में आती हैं। लेकिन इनमें हेर फेर करने से क्रिया का काल परिवर्तित हो जाता है।
जैसे :- वह आता है। तुम सोये हुए हो।
10. सजातीय क्रिया
जब कुछ अकर्मक और सकर्मक क्रियाओं के साथ उनके धातु की बनी भाववाचक संज्ञा के प्रयोग को ही सजातीय क्रिया कहते हैं।
जैसे :- अच्छा खेल खेल रहे हो। वह अच्छी लिखाई लिख रहा है।
11. विधि क्रिया
जिस क्रिया से किसी प्रकार की आज्ञा का पता चले उसे विधि क्रिया कहते हैं।
जैसे :- घर जाओ। ठहर जा।
हिंदी व्याकरण
हिन्दी वर्णमाला | भाषा, लिपि और व्याकरण | संज्ञा | सर्वनाम | वचन | लिंग | क्रिया | विशेषण | कारक | काल | समास | अलंकार | पर्यायवाची | क्रियाविशेषण | विलोम शब्द | समुच्चयबोधक | सम्बन्धबोधक | विस्मयादिबोधक अव्यय | अनेक शब्दों के एक शब्द | प्रत्यय | हिंदी संख्या | मुहावरे | संधि | उपसर्ग | समरूप भिन्नार्थक शब्द | अव्यय | तत्सम और तद्भव शब्द | रस | छंद